राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच दोबारा होगा चुनावी मुकाबला

जयपुर। राजस्थान में सरकार बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी को झटका लगा है। प्रत्याशी के निधन की वजह से नवंबर में करणपुर सीट पर चुनाव नहीं हो पाया था। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस के बीच एक महीने बाद ही दोबारा दिलचस्प चुनावी मुकाबला है। कांग्रेस प्रत्याशी रुपिन्दर सिंह कुन्नर ने भाजपा के उम्मीदवार और राज्यमंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी को 11 हजार 283 वोट से हराया था।
कांग्रेस प्रत्याशी गुरमीत सिंह के निधन के कारण टाले गए चुनाव में कांग्रेस ने उनके बेटे रुपिंदर को उम्मीदवार बनाया था। यहां 5 जनवरी को मतदान हुआ था और मतों की गिनती सोमवार को हुई। जीत के बाद 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या बढ़ कर 70 हो गई है जबकि भाजपा के पास 115 विधायक हैं। करणपुर में कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार को लेकर आम आदमी पार्टी की भी खूब चर्चा हो रही है। हार जीत के अंतर और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को मिले वोट को देखकर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गुजरात-गोवा समेत कई प्रदेश में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाली आम आदमी पार्टी ने इस बार भाजपा को हराने में भूमिका निभाई है। दरअसल कांग्रेस प्रत्याशी रुपिन्दर सिंह को 94 हजार 950 वोट मिले जबकि टीटी को 83 हजार 667 वोट हासिल हुए। तीसरे स्थान पर रहे आम आदमी पार्टी प्रत्याशी पिरथीपाल सिंह को 11 हजार 940 वोट मिले। आप प्रत्याशी को जितने वोट मिले उससे कुछ कम अंतर से ही भाजपा की करणपुर में हार हुई है। हालांकि कुछ राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि यदि आप का प्रत्याशी ना होता तो कांग्रेस की जीत और बड़ी हो सकती थी। करणपुर में रुपिंदर सिंह की जीत काफी हद तक निश्चित थी। इस सीट पर नवंबर 2023 में हुए प्रत्याशी बनाए गए कांग्रेस नेता गुरमीत सिंह का चुनाव से ठीक पहले निधन हो गया था। कांग्रेस ने उनके बेटे रुपिंदर को टिकट देकर सहानुभूति वोट बटोरने का दांव चल दिया जो अक्सर कामयाब भी होता है। गुरमीत सिंह कांग्रेस के पुराने और लोकप्रिय नेता थे। कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान जनता से बार-बार अपील की थी कि रुपिंदर को जिताकर गुरमीत सिंह को श्रद्धांजलि दी जाए। भाजपा भी मानती थी कि कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत है लेकिन भगवा दल ने सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को मंत्री बनाकर एक बड़ा दांव चला जिसमें पार्टी काफी हद तक सफल भी रही और एकतरफा समझे जाने वाले चुनाव में रोचकता बढ़ गई है।